Das Saal : Jinse Desh Ki Siyasat Badal Gai (Paperback, Sudeep Thakur)
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सुदीप ठाकुर तीन दशक से पत्रकारिता में सक्रिय सुदीप ठाकुर का जन्म 20 जुलाई, 1965 को छत्तीसगढ़ के बैकुंठपुर (कोरिया) में हुआ। उनका मूल निवास छत्तीसगढ़ का राजनांदगाँव है। प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक ‘देशबन्धु’ और ‘दैनिक भास्कर’ तथा प्रसिद्ध पत्रिका ‘इंडिया टुडे’ (हिन्दी) में अहम पदों पर रहने के बाद इन दिनों वे हिन्दी के प्रमुख अखबार ‘अमर उजाला’, नोएडा में सीनियर रेसिडेंट एडिटर के बतौर कार्यरत हैं। मध्य भारत के महान आदिवासी नेता लाल श्याम शाह के जीवन पर केन्द्रित उनकी किताब ‘लाल श्याम शाह : एक आदिवासी की कहानी’ काफी चर्चित रही है और उसका मराठी में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुका है। ‘दस साल : जिनसे देश की सियासत बदल गई’ उनकी नवीनतम किताब है।
भारत ने 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ी राज से मुक्त होने के बाद संसदीय लोकतंत्र का रास्ता चुना और 1970 का दशक इस यात्रा का एक अहम पड़ाव था जिसका दूरगामी असर देश की सियासत, शासन पद्धति और कुल मिलाकर देश की जनता पर पड़ा। सत्तर के दशक को ‘इन्दिरा का दशक’ भी कहा जा सकता है। वह 1971 में गरीबी हटाओ के सियासी नारे के साथ पूरे दमखम सत्ता में लौटीं थीं। बांग्लादेश युद्ध में मिली कामयाबी ने इन्दिरा गांधी को लोकप्रियता के शिखर पर पहुँचा दिया और फिर वह एक-एक कर साहसिक फैसले करती चली गईं, जिनमें प्रिवी पर्स की समाप्ति और कोयले का राष्ट्रीयकरण शामिल हैं। इसी दौर में जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई की अगुआई में हुए छात्र आन्दोलन ने इन्दिरा के लिए अभूतपूर्व चुनौतियाँ पेश की, जिसकी परिणति देश ने आपातकाल के रूप में देखी। आपातकाल ने नागरिक आजादी को संकट में डाल दिया था। इसी दौर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नए सिरे से उभार भी दिखा। आजादी के पचहत्तरवें साल में प्रकाशित यह किताब सत्तर के दशक के ऐसे ही पन्नों को खोलती है और उन पर नई रोशनी डालती है। अनुभवी पत्रकार सुदीप ठाकुर की यह शोधपरक किताब रोचकता से भरपूर है; और निष्पक्षता से हमारे लोकतंत्र के एक अहम दशक की पड़ताल करती है, जब कमोबेश वैसे ही सवाल आज हमारे सामने खड़े हैं।
Additional information
Weight | 0.290 kg |
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Dimensions | 19 × 13 × 2 cm |
language | Hindi |
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