Bali Umar
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मैं देखता था कि हिंदी साहित्य में बच्चो के नाम पर सिर्फ़ बाल कहानियां हैं। उनके मन में विकसित हो रहे वयस्क मनोविज्ञान को किसी ने नही दर्शाया। हिंदी साहित्य में इस तरह से कोई किताब नही लिखी गयी, जबकि यह जीवन हर किसी ने जिया है। हर किसी के आसपास पोस्टमैन, खबरीलाल, आशिक, गदहा जैसे दोस्त रहे हैं। मुझे लगता है कि ग्राम्य जीवन में जो मैनेजमेंट और जीवन जीने की कला सीखने को मिलती थी, वह आज शहरी जीवन और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स आने की वजह से बच्चों को नही मिल पाती है। बेशक आजकल के बच्चे पढ़ाई में अच्छे हो रहे हैं, पर जीवन जीने की कला नदारद है। कई पढ़े-लिखे कॉलेज के बच्चे, या बड़ी कंपनियों में जॉब करने वाले लोग इसी कारण आत्महत्या कर लेते हैं, क्योंकि उन्हें हारने पर खुद को संभालना नहीं आता। इसमें उनकी गलती नहीं है, करियर के चक्कर में जीवन जीने की कला सीखने को ही नही मिली। इस पुस्तक में बच्चों का जीवन है, वह जीवन जो हमें उनकी शरारतें, जिज्ञासाएं, कभी हार न मानने की ज़िद, एकजुट रहने और सीखते रहने की प्रेरणा देता है। यह सब छोटी-छोटी चीज़ें हमने गाँव में ही सीख ली थीं। इसे लिखने के पीछे यह सब कारण थे।
बेशक, आप इस कहानी को मेरे बचपन से जोड़ सकते हैं, पर इसमें पाठक स्वयं को भी पाता है, क्योंकि यह बचपन का मनोविज्ञान सिर्फ भगवंत अनमोल के दिमाग में ही नही चलता रहा है। गाँव, क़स्बों और छोटे शहरों में रहने वाला हर व्यक्ति लगभग इसी तरह पला बढ़ा और सीखा है।
- Language: Hindi
- Binding: Paperback
- Publisher: Rajpal & Sons
- Genre: Fiction
- ISBN: 9788194131816
- Pages: 128
ज़िन्दगी 50-50 के युवा लेखक भगवंत अनमोल अपने लेखन में सामाजिक रूप से संवेदनशील विषयों को उठाते हैं और ‘बाली उमर’ में भी उन्होंने एक ऐसा ही विषय चुना है। उपन्यास का केन्द्र है – बच्चों के बचपन का अल्हड़पन, उनकी शरारतें और ज़िन्दगी के बारे में सब कुछ जान लेने की तीव्र उत्सुकता। उपन्यास के मुख्य किरदार बच्चे हैं और कथानक एक गाँव का होते हुए भी यह न बच्चों के लिए है और न ही मात्र आंचलिक है। नवाबगंज के दौलतपुर मोहल्ले के बच्चे जहाँ एक ओर अपनी शरारतों से पाठक को उसके बचपन की स्मृतियों में ले जाते हैं तो दूसरी ओर उनके मासूम सवाल हमारे देश-समाज के सम्बन्ध में सोचने पर विवश कर देते हैं। ‘बाली उमर’ बच्चों के माध्यम से अपने समय की राजनीति और जातीय-क्षेत्रीय पहचानों के संघर्ष की पहचान करता उपन्यास भी है। कहीं भाषा के नाम पर, कहीं पहचान के नाम पर वैमनस्य बढ़ता जा रहा है और इन सबके बीच भारतीयता की पहचान धुंधली होती जा रही है, आपसी खाई बढ़ती जा रही है। यह उपन्यास अपने समय के संदर्भों को सही-सही समझने की माँग करता है। शुरू से आखिर तक दिलचस्प किरदारों की मासूम शरारतों के सहारे लेखक ने बहुत रोचक शैली में अपनी बात कही है। भगवंत अनमोल उन चुनिंदा युवा लेखकों में हैं, जिन्हें हर वर्ग के पाठकों ने हाथोंहाथ लिया है। लेखक उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के ‘बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’ पुरस्कार 2017 से सम्मानित हो चुके हैं। उनकी पुस्तक ‘ज़िन्दगी 50-50’ पर कई विद्यार्थी शोध कर रहे हैं।
Additional information
Weight | 0.4 kg |
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Dimensions | 20 × 12 × 5 cm |
brand | Natham publication |
Genre | Fiction |
Binding | Paperback |
language | Hindi |