जब अनुभव बात करता है, जब जिज्ञासा शब्द रूप लेती है, जब दर्द आईना देखता है और जब जिंदगी मुस्कुराकर हर चुनौती को स्वीकार करती है तब सिलसिला शुरू होता है मन की उलझनों का और ये उलझनें जब कविमन की हथेलियों पे रख सहलाई जाती हैं, तब बनती हैं ”कुछ अधूरी बातें मन की..’
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language | Hindi |
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