Ullanghan
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राजेश जोशी का जन्म 18 जुलाई, 1946 को नरसिंहगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ। आपकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—कविता संग्रह : ‘एक दिन बोलेंगे पेड़’, ‘मिट्टी का चेहरा’, ‘धूपघड़ी’ (एक दिन बोलेंगे पेड़ और मिट्टी का चेहरा का संयुक्त संस्करण), ‘नेपथ्य में हँसी’, ‘दो पंक्तियों के बीच’, ‘चाँद की वर्तनी’, ज़िद’, ‘प्रतिनिधि कविताएँ‘, ‘कवि ने कहा’, ‘समरगाथा’ (लम्बी कविता); कहानी संग्रह : ‘सोमवार और अन्य कहानियाँ’, ‘कपिल का पेड़’, ‘मेरी चुनी हुई कहानियाँ’; आख्यान : ‘क़िस्सा-कोताह’, नाटक : ‘जादू जंगल’, ‘अच्छे आदमी’, ‘पाँसे’, ‘सपना मेरा यही सखी’; नुक्कड़ नाटक : ‘हमें जवाब चाहिए’; आलोचना : ‘एक कवि की नोटबुक’, ‘एक कवि की दूसरी नोटबुक : समकालीनता और साहित्य’, ‘कविता का शहर : एक कवि की नोटबुक’ (भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में कविता और शहर के सम्बन्ध पर लिखा गया मोनोग्राफ़); कथेतर : ‘वह हँसी बहुत कुछ कहती थी’; बाल साहित्य : ‘गेंद निराली मीठू की’ (कविता), ‘ब्रह्मराक्षस का नाई’ (नाटक)। अनुवाद : ‘पतलून पहिना बादल’ (व्लादीमिर मायकोवस्की की कविता), ‘भूमि का यह कल्पतरु’ (भर्तृहरि की कविताओं की अनुरचना)। सम्पादन : ‘इसलिए’ (1977-83), ‘नया पथ’ के निराला शताब्दी अंक के साथ पाँच अंक, ‘वर्तमान साहित्य का कविता विशेषांक’ (1992), त्रिलोचन का कविता-संग्रह ‘ताप के ताए हुए दिन’ (1980), ‘नागार्जुन संचयन’ (साहित्य अकादेमी, 2005), ‘मुक्तिबोध संचयन’ (भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, 2015)। पुरस्कार : ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘श्रीकान्त वर्मा स्मृति सम्मान’, ‘पहल सम्मान’, ‘शमशेर सम्मान’, ‘मुक्तिबोध पुरस्कार’, ‘माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘शिखर सम्मान’, ‘मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान’, ‘निराला स्मृति सम्मान’, ‘क़ैफ़ी आज़मी अवार्ड’, ‘प्रो. आफ़ाक़ अहमद स्मृति अवार्ड’, ‘जनकवि नागार्जुन स्मृति सम्मान’, ‘शशिभूषण स्मृति नाट्य सम्मान’ आदि। कविताएँ अनेक भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनूदित।
- Language: Hindi
- Binding: Paperback
- Publisher: Rajkamal Prakashan
- Genre: Poetry
- ISBN: 9789390971824
- Pages: 128
उल्लंघन संग्रह में कवि हुक्म-उदूली की अपनी प्राकृतिक इच्छा से आरम्भ करते हुए मौजूदा दौर की उन विवशताओं से अपनी असहमति और विरोध जताता है, जिन्हें सत्ता हमारी दिनचर्या का स्वाभाविक हिस्सा बनाने पर आमादा है। एक ऐसे समय में ‘जिसमें न स्मृतियाँ बची हैं/न स्वप्न और जहाँ लोकतंत्र एक प्रहसन में बदल रहा है/एक विदूषक किसी तानाशाह की मिमिक्री कर रहा है’—ये कविताएँ हमें निर्प्रश्न अनुकरणीयता के मायाजाल से निकलने का रास्ता भी देती हैं, और तर्क भी। कवि देख पा रहा है कि ‘सिकुड़ते हुए इस जनतंत्र में सिर्फ़ सन्देह बचा है’, ताक़त के शिखरों पर बैठे लोग नागरिकों को शक की निगाह से देखते हैं, तरह-तरह के हुक्मों से अपने को मापते हैं; कहते हैं कि साबित करो, तुम जहाँ हो वहाँ होने के लिए कितने वैध हो, और तब कविता जवाब देती है–‘ओ हुक्मरानो/मैं स्वर्ग को भूलकर ही आया हूँ इस धरती पर/तुम अगर मुझे नागरिक मानने से इनकार करते हो/तो मैं भी इनकार करता हूँ /इनकार करता हूँ तुम्हें सरकार मानने से!’ लगातार गहरे होते राजनीतिक-सामाजिक घटाटोप के विरुद्ध पिछले चार-पाँच सालों में जो स्वर मुखर रहते आए हैं, राजेश जोशी उनमें सबसे आगे की पाँत में रहे हैं। इस संग्रह की ज़्यादातर कविताएँ इसी दौर में लिखी गई हैं। कुछ कविताएँ महामारी के जारी दौर को भी सम्बोधित हैं जिसने सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने के सरकारी उद्यम पर जैसे एक औपचारिक मुहर ही लगा दी–‘सारी सड़कों पर पसरा है सन्नाटा/बन्द हैं सारे घरों के दरवाज़े/एक भयानक पागलपन पल रहा है दरवाज़ों के पीछे/दीवार फोड़कर निकल आएगा जो/किसी भी समय बाहर/और फैल जाएगा सारी सड़कों पर!’
Additional information
Weight | 0.4 kg |
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Dimensions | 20 × 12 × 5 cm |
brand | Natham publication |
Genre | Poetry |
Binding | Paperback |
language | Hindi |