Rabiya Ka Khat (Paperback, Medha)

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मेधा की ये कविताएँ बादलों की लिपि में लिखी दहराकाश की उच्छल कविताएँ है! एक ख़ास तरह की मनोभूमि में जैसे संत कवि रहती थीं, मेधा भी रहती हैं : जीवन-जगत का यथार्थ उनके यहाँ इसीलिए एक बृहत्तर आयाम पा जाता है! महर्षि अरविंद के दर्शन की छाँव हो या भक्तिवर्सिटी के दार्शनिक स्थापत्य की छाया : कारण जो भी हो, पर इन्हें चित्त के अनन्त विस्तार का साक्ष्य वहन करना आ गया है जो एक बड़ी आध्यात्मिक उपलब्धि है! वैसे तो बहनापे के रंग में रँगी शाहीनबाग़ वाली कविताएँ या अन्य बहिर्मुखी कविताएँ भी अपने उत्कट विडम्बना-बोध के कारण अलग से दमकती हैं,पर इनकी चेतना का वास्तविक वैभव देखना हो तो प्रकृति और प्रेम को निवेदित इनकी कविताओं का सस्वर पाठ करके देखना चाहिए जिनसे एक अलग तरह का अंतर्संगीत फूटता है! इनके बिम्ब भी कहीं सलमा-सितारों की तरह ऊपर से टाँके हुए नहीं लगते, कविता की अपनी बुनावट में शामिल है इनके अर्थ-संकेत! गहराई और व्यापकता—दोनों कसौटियों पर खरी उतरी ये कविताएँ उत्कट समर्पण की जिस भावभूमि पर घटित जान पड़ती हैं—आधुनिक प्रेम कविताओं में वह विरला ही है! बीच-बीच में कहीं प्रश्न आते भी है तो वैसे जैसे खुले आकाश में कोई पक्षी उड़ता चला जाए! उत्तर की भी जैसे कोई अपेक्षा नहीं हो, प्रेम पात्र भी जैसे एक टेक-ऑफ़ प्वाइंट ही हो—एक सार्थक लेकिन आनुषंगिक प्रस्थान-बिन्दु! प्रेम के सिवा जैसे कोई भाव ही नहीं बचा हों कहीं—जित देखौं तित लाल ! वैसे तो कविता स्वभाव से ही एक कामसुखन विधा है : एक कौंध में इसे जीवन-जगत की विसंगतियाँ द्रावक बंकिमता के साथ प्रकट करनी होती है—बहुत कम नए कवि एब्सोल्यूट मिनिमम वाला यह शिल्प साध पाते हैं जैसा मेधा ने साधा है! ओस की बूँदों की लय में इनकी कविता में शब्द झड़ते हैं और पत्तियों की आत्मा में एक मीठी नमी फैल जाती है! इन कविताओं का प्रकाश धीरे-धीरे पाठक के भीतर प्रवेश करे और उसकी दुनिया समृद्ध हो, इसकी सहस्र शुभकामनाएँ! –अनामिका

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Hindi

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